Suar Palan- नागालैंड, जो भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित है, वहां के किसानों के लिए सुअर पालन एक नई आयाम स्थापित कर रहा है। इस क्षेत्र में सुअर पालन का अभ्यास आम है, लेकिन एक किसान ने इसमें विशेष रूप से सफलता प्राप्त की है।
नागालैंड के इस किसान ने देखा कि सुअर की उत्पादन में कमी है और उसने इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मदद ली। नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने उत्तर-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र के लिए आईसीएआर-अनुसंधान परिसर, नागालैंड केंद्र, मेडजिफेमा में सुअर पर आईसीएआर-मेगा बीज परियोजना को साल 2009 में लागू किया। इस परियोजना के माध्यम से नए तकनीकी उपायों का अध्ययन करने का मौका मिला और सुअर पालन को सुधारने के लिए उन्नत जन्म लिया गया।
नागालैंड में सूअर की मांग बढ़ रही है, क्योंकि यहां के आदिवासी लोग स्वाद में ताजगी और स्वास्थ्य के लाभ के लिए ताजा सुअर का मांस पसंद करते हैं। इसके अलावा, काले सूअरों को सांस्कृतिक प्राथमिकता भी दी जाती है। सुअर पालन इस क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से जुड़ा हुआ है और लगभग साठ हजार मीट्रिक टन पोर्क की वार्षिक मांग है। लेकिन यहां का अपना उत्पादन केवल तीस हजार टन है, जिससे राज्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई कदम उठाने की आवश्यकता है।
इस समस्या का हल निकालने के लिए, नागालैंड के किसान ने उत्तर-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र के लिए आईसीएआर-अनुसंधान परिसर में सुअर पालन पर आईसीएआर-मेगा बीज परियोजना का सहारा लिया है। इस परियोजना में विभिन्न हितधारकों को सुअरों के 6,500 उन्नत जर्मप्लाज्म प्रदान किए गए हैं और लगभग 1,000 व्यक्तियों को सुअर पालन की आधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षित किया गया है। Suar Palan.
एक और दिलचस्प बात यह है कि इस परियोजना के माध्यम से किए जा रहे अनुसंधान ने रानी सुअर की प्रजनन क्षमता को बढ़ाया है। रानी सुअर एक विशेष प्रजाति है जिसका वजन प्रतिदिन औसतन 280 से 350 ग्राम तक बढ़ता है। इसके साथ ही, इसकी आयु सात से दस महीने के बीच होती है, जिससे यह साल में दो बार प्रजनन कर सकती है। इससे नागालैंड के किसानों को अधिक प्रजनन और उच्च उत्पादक्षमता का लाभ हो रहा है।
इस नई तकनीक के परिणामस्वरूप, सुअर पालन में कई युवा उद्यमी भी सामिल हो रहे हैं, जो इस क्षेत्र को और भी सुधारने का दृष्टिकोण ला रहे हैं। इन उद्यमियों को भी सुअर पालन के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र में ज्यादा विकास हो सके। Suar Palan.
नागालैंड में सुअर पालन के इस नए दौर के बारे में और भी रूपरेखा मिल रही है, जिससे यह साबित हो रहा है कि सुअर पालन ने इस क्षेत्र के किसानों के लिए एक नया द्वार खोला है। इसके अलावा, नागालैंड के किसान अब अपनी मांग को पूरा करने के लिए पंजाब, हरियाणा, और दक्षिणी राज्यों से जीवित सूअरों का आयात करने की आवश्यकता महसूस नहीं कर रहे हैं। Suar Palan.
इस प्रशिक्षण के बाद प्रजनन के लिए सूअरों को पालने के लाभों का अहसास किया और उन्होंने सूअरों में कृत्रिम गर्भाधान (एआई) का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने एक वर्ष में 250 से 300 पिगलेट बेचते हैं और इससे उन्हें प्रति वर्ष 3.5 से 4.0 लाख रुपये का आत्मनिर्भर इनकम हो रहा है।
सेवे ने अपने फार्म से लगभग 1,000 सूअर के बच्चे बेचे हैं और 250 सूअर के बच्चे उनके फार्म पर सूअर या चर्बी के लिए पाले गए हैं। उनकी कहानी ने दिखाया है कि सुअर पालन से एक युवा किसान ने कैसे अच्छे आय का स्रोत बनाया है और कृषि से जुड़े अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है।
सुअर पालन के इस नए दौर के माध्यम से नागालैंड के किसानों को नए और वृद्धिशील तकनीकों का परिचय हो रहा है, जिससे उन्हें अधिक उत्पादक्षमता और आय मिल रही है। इस प्रकार, सुअर पालन ने नागालैंड के कृषि क्षेत्र में नए दिशा से एक सफलता की कहानी रची है|